ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
संसार में कई प्रकार के लोग हैं। कुछ लोग केवल अपने बारे में ही सोचते हैं और कुछ लोगों को पूरे विश्व के बारे में सोचना पड़ता है। जो लोग केवल अपने बारे में सोचते हैं उनके लिए केवल उनका परिवार ही सबकुछ होता है। वो उसी से संबंधित सोचते हैं और आखिर में उन्हीं के साथ अपना जीवन बिता कर इस संसार से अंतिम विदाई ले लेते हैं। उनके लिए केवल उनका परिवार ही रोता बिलखता है। परन्तु जो लोग पूरे समाज, देश या फिर विश्व के बारे में सोचते हैं वे उसके लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। ऐसे लोगों को पूरा समाज, देश या फिर पूरा विश्व जानता है, और उसके अंतिम समय में उसके परिवार के साथ-साथ पूरा विश्व ही श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
काव्यक्रम
- उजला सवेरा
- आत्मकथ्य
- हरियाली और घटाएं
- धरती वंदना
- गरीब की आंखें
- तुम्हारा वियोग
- मेरा जीवन
- आज का दिन
- चांदनी
- उसकी याद
- प्रकृति
- मां प्रकृति
- प्रकृति के साथ रिश्ता
- बरसात
- शीतल पवन
- प्रकृति का चेहरा
- मेरे आंगन में
- अंधेरे में
- अमीर और गरीब
- भीगा तन
- राजभाषा
- मैली साड़ी वाली
- अपनेपन का एहसास
- आओ प्रिये
- नाम मिटाया
- जीवन की डोर
- सिगरेट का टुकड़ा
- अन्दर का कवित्व
- गांव की याद
- राजस्थान
- पहली बारिश
- शादी
- मस्त हवा
- यादें और हवा
- प्रेमांकुर
- वर्षा का स्वागत
- तुम्हारा तन
- तुम्हीं
- बीते ख्याल
- पहचान
- छूना है चांद को
- राजस्थान का थार
- बरसात और उमस
- गर्मी
- काली घटाएं
- चमकता चेहरा
- हरियाली
- पहली बार
- चलो उठो जागो
- जीवन
- तेरी दासी
- मेरा जीवन
- सहारा
- विरासत
- पानी और उमस
- आत्मकथ्य
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